बसन्त आया है
A Thought
An effort to express!!
Thursday, March 23, 2023
बसन्त
बसन्त आया है
Saturday, December 29, 2018
ऊनी मोजे
कुछ चीज़ें,
अनमोल होती हैं,
जैसे
ये ,
ऊनी मोजे,
जाड़ा,
और ,
ऊनी मोजे,
कुछ अपना सा रिश्ता है इनसे,
बचपन के दिनों
में,
जाड़े की शाम को,
हमें,
खेलने के बाद,
मुह-नाक,
साफ कर के,
ऊनी कपड़ो में,
कैद कर दिए जाते थे,
और हम,
उस समय,
बस ,
पुरी दुनिया के शहंशाह,
उनमें,
इन ऊनी मोजों की गर्माहट,
अभी तक याद है मुझे।
आज भी ,
पैर धो कर ,
इनको पहनकर,
आने वाली खुशी,
ऊन से आई गर्माहट,
से ज्यादा गर्मी देती है।
Tuesday, September 4, 2018
कनेर के फूल ।
Friday, June 22, 2018
मेरी पहचान
मैं ,वो बारिश की पहली बूँद ,
मैं ,सुबह के सूरज की पहली किरण ,
मैं ,रात का पहला सितारा |
मैं तुम और तुम मैं ,
मैं ,पहाड़ के ऊपर का बादल ,
मैं ,वो जंगल में अचानक से दिख के गायब हुआ खरगोश ,
मैं ,वो चाय की अचानक से आयी सुगंध,
मैं, सुबह सुबह की तुम्हारी देह की गंध ,
मैं ,अचानक से आयी किसी की याद ,
मैं ,रात के दो बजे की बेचैन कर देने वाली खुली नींद,
मैं ,गर्मी की दोपहर की ठंडी हवा ,
मैं ,नदी के किनारे बैठे पैरों से
अठखेलियां करती धारा ,
मैं ,आसमान को छूने की कोशिश
में लगा पहाड़ ,
मैं,उसके छूके वापस आने
के इंतज़ार में
बैठी
धरती |
Tuesday, May 29, 2018
आना न तुम।
ऐसे आना न तुम
जैसे महीनों सूरज की गर्मी में तपी धरती पर,
आती है बारिश की बूंदें
और उनको पाकर महक जाती है ,
जमीन।
ऐसे आना न तुम ,
जैसे पौधे के तीन चार दिनों के सूखे पत्तों पे ,
गिरता है पानी ,
और फिर वो हरे होकर खिल जाते हैं।
ऐसे आना न तुम जैसे,
महीनों सुने पड़े घर में आते हैं लोग,
और फिर उनकी चहल पहल से ,
वो चहचहाहट से भर जाता है।
ऐसे आना न तुम ,
जैसे अमावस के पंद्रह दिनों के बाद,
आता है चाँद,
और फिर वो पूरे आकाश को,
रौशन कर देता है।
तुम,
जल्दी ही आना ।
Thursday, March 22, 2018
आलमारी
ये रोज रात को आलमारी के दरवाजे ,
चर्र चर्र करते हैं।
कभी कभी तो
उठकर बंद कर देती हूं।
फिर भी थोड़ी देर बाद
फिर से चर्र चर्र करना
शुरू कर देते हैं ।
लगता है ,
तुम्हारे जैसे हैं
निहायत ही जिद्दी
पर प्यारे भी हैं,
कभी कपड़े निकालने जाती हूँ
तो खुद ही खुलकर
काम आसान भी कर देते हैं।
पर कुछ तो बात है इनमें
आदत सी है मुझे इनकी
मेरे सारे बिखड़े कपड़े
खुद में संभाले बैठे हैं,
गिरने नही देते एक भी ,
और मेरे छोटी छोटी यादों के सामान
भी तो संजोये बैठे हैं ना।
बिल्कुल तुम जैसे हैं ये भी ।
Wednesday, February 14, 2018
तुम्हारा बुना स्वेटर माँ।
रोज सुबह
तुम्हारे हाथ से प्यार से बने स्वेटर पहनते ही
दिन अच्छा हो जाता है माँ।
कितनी मेहनत से बनाया होगा न ।
हज़ारों में एक रंग चुनके
किताबों में छपी अनंत डिज़ाइन में एक लेकर।
बुनने के काँटों में फंदा, एक उल्टा ,एक सीधा कर।
घंटो हाथ चलाते,
ऊन का गोला बना बनाकर ,
अपनी जिंदगी के सारे काम छोड़ कर,
इसमें सारा प्यार -दुलार भरकर।
तभी ,
तभी तो,
इसको पहनते ही ।
सारी ठंड हवा हो जाती है
और तुम्हारे प्यार की गर्माहट भर जाती है ।
ये लाल स्वेटर भी न ।