Friday, December 16, 2016

मोची की इच्छा।

ये चलते फिरते पैर,
सुबह से शाम तक ,
मैं इनमें चढ़े जूतों-चप्पलों को ही देखता हूँ,
देखता हूँ आशा से ,
पता नहीं कब इनको मेरी जरुरत पर जाए,
दूर दूर से आ रहे पैर,
सामने -पीछे से जा रहे पैर,
घूम घूम के सब पर नज़र रखता हूँ,



वैसे सच कहूं तो ये भी मनाता हूँ,
कि आज थोड़ी ज्यादा धूल हो,
या फिर कि चलते चलते किसी के जूते,
टूट जाएं।

ये लड़की जो अपने दोस्तों के साथ चली जा रही है
ये बच्चा जो दादाजी की उँगलियाँ थामे बढे जा रहा है।
ये जोड़ा जो साथ में गुनगुनाता जा रहा है।
मैं इन सबकी खुशियों में सरोबार तो होना चाहता हूँ।
पर अंदर ही अंदर ये भी चाहता हूँ ,
भगवन इनके जूते तो बड़े अच्छे हैं।
हो सके तो इनको थोड़ा गन्दा कर देना।
ज्यादा पैसै मिलेंगें
जो पैसे मिलेंगे ,
प्रसाद तुम्हे भी चढ़ा दूंगा।


अच्छा चलो गन्दा न सही ,
इनके फीते ही थोड़े उलझा देना।
कुछ तो पैसे मिल  ही जायेंगे।

बहुत ध्यान से देखता हूँ,
मैं इनके रंग को,
काले ,भूरे ,हलके भूरे 
सब पालिशें सजा के रखीं हैं मैंने,
हर पालिश की अलग अलग ब्रश के साथ।
जैसे ही जरुरत पड़े तुरंत निकाल के सामने कर दूंगा।

बस इसी आशा के साथ निहारता हूँ इनको,
पता नहीं जब कहाँ कैसे टूट जाएं ।
फिर अपने हाथों से बनाउंगा मैं इनको।
बङे प्यार से।


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