बड़ी मुश्किल की बात थी
उस दिन रात को
जब खिड़की के परदे हटाते समय ,
हाथ पे आ गिरी
निरी सी छिपकली ।
पूरे कमरे में मैंने आपातकाल जारी कर दिया ,
अब तो कोई काम नहीं होगा ,
जब तक ये कमरे से बाहर न चली जाए ।
हॉस्टल में अपने दोस्तों को भी मैंने इतिल्ला कर दिया ,
जल्द से जल्द इस इस स्थिति में हमारी
अब ये छिपकली तो हैं ही बहुत डरावनी ,
इन्होंने भी तत्परता दिखाते हुए ,
हमारे घुड़कने वाले बक्शे के पीछे अपनी जगह बना ली ,
अब झाडू से मारो या बक्शे को ,
आराम से निश्चिन्त बैठी थीं वो ,
और यहाँ,
हमारी जान निकली जा रही थी
हमारी जान निकली जा रही थी
रात को सोयेंगे कैसे ।
तब तक हमारे दोस्त भी आ गए थे ,
हम एक बार चिल्लाते तो वो,
दो बार और चिल्लाते ,
आस पास के कमरे वाले बाहर आ गए
उन्होंने सोचा,
पता नहीं कौन सा बड़ा जानवर आ गया ।
पता नहीं कौन सा बड़ा जानवर आ गया ।
पर छोटी मुँह बड़ी बात वाली कहावत ,
यहाँ पूरी उस निरी छिपकली के ऊपर सिद्ध थी ,
हम तीनो ने मिलके खूब कोशिश की
सारे सामानों को कमरे से बहार कर दिया ।
पर हिम्मत तो देखिये,
हमारी नहीं छिपकली की
वो मैडम अब भी हमारे सूटकेस पे चढ़ के ही बैठी थी ।
वो तो धन्य हैं हमारे घरवाले,
की घुड़कने वाले सूटकेस था ,
वरना वो रात तो बैठे बैठे ही कटती ।
धीरे धीरे उसे हमने ,
छिपकली सहित बाहर कर दिया
और अगर टूट जाने के दर नहीं होता तो
उसे सीढ़ियों पर छिपकली सहित दौड़ाते उतार भी देते ।
अंततः,मैडम हमारे कमरे से बाहर हुई
और
हमारी बेचैनी फारिग हुई ।
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