बसन्त आया है
आयी हैं गेहूँ की बालियां
और आएं हैं सरसों के फूल
आये हैं धुप की गर्मी के साथ
फूलों के रंग
होली की धूम समेटे हुए ,
आये हैं हुरदंग मचाते कुछ बादल,
बिछा दी है ,
पत्तों ने सुनहली चादर,
इनके आने की ख़ुशी में ।
लुका-छिपी खेल रहे हैं ,
फलों के मंजर।
गर्मी आने को है आतुर
पर ठण्ड को भी है जाने से इंकार
ये खींचातानी देख ,
हॅस रही है कोयल
और
गा रही है अपने गीत,
इन सबको देख कर
अपनी चादर समेटकर
चल दिया है
चाँद |
कि , बसंत आया है |
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