Saturday, November 25, 2017

रोज सुबह ।















रोज सुबह
सूरज की किरण की तरह
तुम्हारी याद
हमारे कमरे में आ फुदकती है ।
मैं अपने काम में लगी
कभी लोगों से बातें करती
इधर से उधर घुमती हुँ।
ये भी कभी मेरे आगे
कभी मेरे पीछे
घूमती रहती है ।
ज्यादा भगाने की कोशिशें करती हूं,
तो कभी किसी के पीछे छुप
जाती है ।
और चुप चाप सारी बातें सुनती है ।
शाम की चाय भी हम साथ ही पीते हैं।
वो गुमसुम सी
दोस्तों के साथ हमारी सारी हँसी सुनती है
फिर धीरे धीरे फुदकते फुदकते
सो जाती है ।
और साथ में हमारी रात भी हो जाती है ।
सुबह से ,
फिर से वही
जाड़े की सुबह
और तुम्हारी याद |

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