ये रोज रात को आलमारी के दरवाजे ,
चर्र चर्र करते हैं।
कभी कभी तो
उठकर बंद कर देती हूं।
फिर भी थोड़ी देर बाद
फिर से चर्र चर्र करना
शुरू कर देते हैं ।
लगता है ,
तुम्हारे जैसे हैं
निहायत ही जिद्दी
पर प्यारे भी हैं,
कभी कपड़े निकालने जाती हूँ
तो खुद ही खुलकर
काम आसान भी कर देते हैं।
पर कुछ तो बात है इनमें
आदत सी है मुझे इनकी
मेरे सारे बिखड़े कपड़े
खुद में संभाले बैठे हैं,
गिरने नही देते एक भी ,
और मेरे छोटी छोटी यादों के सामान
भी तो संजोये बैठे हैं ना।
बिल्कुल तुम जैसे हैं ये भी ।
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