Tuesday, May 29, 2018

आना न तुम।

ऐसे आना न तुम
जैसे महीनों सूरज की गर्मी में तपी धरती पर,
आती है बारिश की बूंदें
और उनको पाकर महक जाती है ,
जमीन।

ऐसे आना न तुम ,
जैसे पौधे के तीन चार दिनों के सूखे पत्तों पे ,
गिरता है पानी ,
और फिर वो हरे होकर खिल जाते हैं।

ऐसे आना न तुम जैसे,
महीनों सुने पड़े घर में आते हैं लोग,
और फिर उनकी चहल पहल से ,
वो चहचहाहट से भर जाता है।

ऐसे आना न तुम ,
जैसे अमावस के पंद्रह दिनों के बाद,
आता है चाँद,
और फिर वो पूरे आकाश को,
रौशन कर देता है।

तुम,
जल्दी ही आना ।

No comments: